मेनार की जमरा बीज
मेनारिया समाज के आदर्श व मुख्य गाव मेनार में खेली जाती है बारूद से होली, 500 साल से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के लिए सभी मेनार वासी मेवाड़ी वेश भूषा में होते हैं। धोती-कुर्ता और कसुमल पाग पहने व हाथ में तलवार बंदूक व हानियां लिए ओंकारेश्वर चौक में इकट्ठे होते हे। वहीं गरजती तोपों व आग ऊगलती बंदूकों की गर्जनाओं से युद्ध जैसा माहौल हो जाता है।
यहां दोपहर से ही कार्यक्रम की शुरुआत हो जाती है. दोपहर में गांव के सभी लोग ओंकारेश्वर चबूतरे पर
एकत्र होते हैं। व पूरे साल का लेखा-जोखा देखते हैं। फिर बाहर से आए मेहमानो का स्वागत किया जाता है व गांव के सभी लोग अपने अपने घरों में गुड़ के पकोड़े ( भजिया ) पापड़ी बनाते हे व गांव में आये हुवे मेहमानो की मेहमान नवाजी होती है।
फिर शाम को लगभग 8 बजे के आस पास ओंकारेश्वर चबूतरे पर आने वाली पांच गलियां हैं,
गांव में अलग-अलग क्षेत्र में रहने वाले युवाओ की टोलिया
पांचो गलियों से आतिशबाजी करते हुए जलती हुई मशालो के साथ चौक तक आते हे करीब दो घंटे से जादा तक आतिशबाजी होती है जिसमे बंदूकों से हवाई फायर किए जाते हे पठाके फोड़े जाते हे व गांव की पांचों गलियों में रखी गई तोपो से हवाई गोले दागे जाते हे बंदूकों-तोपों की बौछार की तेज आवाजों से इलाका गूंज उठता है.
फिर पांचों रास्तों से बड़े बुजुर्गों, युवा सभी एकत्रित हो जाते हैं फिर फेरात के इशारे पर युद्ध जेसी आतिशबाजी के लिए तैयार हो जाते हे बंदूक से हवाई फायर करते हुए हाथ में चमकती तलवार लहराते हुए दौड़ते हुए चौक में एकत्रित होते हे और पांचों मशाले साथ में मिल जाती है यह नजारा देखने लायक होता हे युद्ध सा माहौल देखने मिलता हे फिर लाल रंग की गुलाल उड़ाई जाती है। व युद्ध जेसे दिखने वाले माहौल को शान्त किया जाता है।
माहौल शांत होने के बाद पांचों मशाले ढोल के साथ गांव के सभी पुरुष व महिलाए लोटे में जल लेकर एक साथ गांव के थंब चौक की ओर रवाना होते हे वहा घाटी पर मेनार गांव के इतिहास की कथा सुनाई जाती है। कथा होने के बाद सभी महिलाए जमरा खांडने जाती है।
फिर सभी ओंकारेश्वर चबूतरे पर आते हैं वहा पर जबरी गैर खेली जाती है। गैर तलवार और हानियां के साथ खेलते हे जिसमे गैर खेलते वक्त एक हाथ से तलवार गुमाते हे यह नजारा देखने में युद्ध में लड़ते हुए सैनिकों जैसा लगता हे। गैर करीब 2 से 3 गंटे तक खेली जाती है।
गैर खेलने के बाद तलवार व आग के गोटे गुमाए जाते हे
सबसे बड़ी बात यह है कि बारूद की इस होली में किसी प्रकार का पुलिस जाब्ता नहीं लगाया जाता हे ग्रामीणों में इतना अनुशासन है कि बारूद की होली खेलते हुए भी कोई झगड़ा या किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है। हर्षोल्लास के साथ जामरा बीज का ये सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता है।
कर्नल जेम्स टॉड ने भी मेनार का उल्लेख अपनी पुस्तक 'द एनालिसिस ऑफ राजस्थान' में मणिहार नाम के गांव के नाम से किया है.
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